राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्

लीची अनुसंधान और विकास को समर्पित

लीची की आवश्यकताओं को मद्देनजर रखते हुये लीची के विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भा.कृ.अनु.प.) द्वारा लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर, बिहार में (नवीं पंचवर्षीय योजना के अंत में) स्थापना की गई। यह देश की एकमात्र ऐसी संस्था है जो लीची और इस परिवार के अन्य सदस्यों के अनुसंधान और विकास के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर, बिहार का औपचारिक उद्घाटन तत्कालीन कृषि मंत्री माननीय श्री नितीश कुमार के कर कमलों द्वारा दिनांक 6 जून, 2001 को सम्पन्न हुआ। केन्द्र ने अपना कार्य अप्रैल 2002 से प्रारंभ किया और तब से लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
लीची एक सदाबहार उपोष्ण कटिबंधीय फल वृक्ष है, जिसके फल अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के कारण भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए हैं। लीची उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। दिनों-दिन लीची की बढ़ती चाहत के कारण इसकी माँग घरेलू और विदेशी बाजारों में बढ़ती जा रही है। विगत कुछ वर्षो में निर्यात की अपार संभावनायेँ विकसित हुई और इसके साथ ही विदेशी बाजार के लिए कोडेक्स मानक के अनुरूप गुणवत्तायुक्त फलों की ही मांग है। अतः उत्पादन, उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ गुणवत्ता विकास भी नितांत आवश्यक हो गया है।

उत्पति

लीची की बागवानी के लिए विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है जो देश के अधिकांश भागों में उपलब्ध नहीं है। इसी कारण इसकी खेती देश के कुछ ही भागों में सीमित है। फलों की गुणवत्ता और बागवानी योग्य जलवायु के आधार पर अभी तक बिहार लीची उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र रहा है। लीची के क्षेत्र में हमारे देश में अभी तक आशा के अनुरूप, बहुयामी अनुसंधान और विकास का कार्य नहीं हुआ थे। इस फल में जो शोध, सर्वेक्षण और विकास का कार्य अब तक हुआ था उनमें मुख्य रूप से कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कुछ बागवानी के संस्थान शामिल थे।

अवस्थिति

इस केन्द्र का प्रयोगिक प्रक्षेत्र मुशहरी, मुजफ्फरपुर में है जो कि मुजफ्फरपुर-पूसा रोड पर शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसकी परिस्थिति 26° 5’87”उत्तरी अक्षांश और 85° 26’69”पूर्वी देशांतर है और यह समुद्री तल से 210 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यहां की जलवायु उपोष्ण है और यहां 1100-1300 मि.मी. वार्षिक वर्षा होती है। यहां का अधिकतम तापमान 31°से 42° सेल्सियस एवं औसतन 15-30° सेल्सियस रहता है। इसका प्रायोगिक प्रक्षेत्र 40 हैक्टर में फैला है जो कि बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त है।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र का दृष्टिक्षेत्र

लीची उत्पादकों और व्यापारियों को आजीविका सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि प्रदान करने के लिए लीची अनुसंधान, विस्तार और कौशल विकास के क्षेत्र में भा.कृ.अनु.प.- राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र को उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में विकसित करना।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र का मिशन

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उपयोगकरके अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों द्वारा गुणवत्तायुक्त उत्पादन, उत्पादकता, प्रसंस्करण एवं विविध उपयोग को बढ़ावा देना ताकि लीची उत्पादन, उद्योग और व्यवसाय की निरंतरता बनी रहे.

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र का अधिदेश

• लीची के संवर्धित, सतत और सुरक्षित उत्पादन के लिए आनुवंशिक संसाधनों और उत्पादन प्रौद्योगिकियों पर अनुप्रयुक्त और रणनीतिक अनुसंधान • लीची की उत्पादकता बढ़ाने और बानररखने के लिए हितधारकों की प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण का हस्तांतरण

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र का कार्य

• लीची की उत्पादकता, गुणवत्ता और उपयोगिता बढ़ाने के लिए बुनियादी, रणनीतिक और व्यावहारिक अनुसंधान करना • लीची के सभी पहलुओं पर आनुवंशिक संसाधनों और वैज्ञानिक जानकारी के भंडार के रूप में कार्य करना • नई प्रौद्योगिकियों में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन करना और वैज्ञानिक ज्ञान के उन्नयन के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना

प्रायोगिक उपलब्धियाँ

ढ़ाँचागत सुविधायें, जैसे ग्रीन हाउस, नेट-हाउस मिस्ट चैम्बर (फुहारा गृह), मौसम पूर्वानुमान इकाई, और प्रयोगशाला आदि की सहायता से लीची का जनन द्रव्य संग्रह, मूल्यांकन, चरित्र वर्णन, पौध रोपण, पौध सुरक्षा, तुड़ाई-उपरांत प्रबंधन, प्रसारण और संबंधित विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान और तकनीकी विकास का कार्य प्रगति पर है।
लीची में हुए हाल तक के विभिन्न शोध कार्यो में लीची के उपलब्ध जनन द्रव्यों का संकलन और तुलनात्मक अध्ययन, नये बागों के लगाने की विधि, गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए वैज्ञानिक कृषि प्रणाली, बगीचे का उचित प्रबंधन (सिंचाई और पोषण प्रबंधन), समेकित कीट और रोग प्रबंधन और विभिन्न प्रसंस्कृत परिरक्षित पदार्थों का बनाना आदि मुख्य हैं। अनुसंधान के द्वारा ही परिपक्वता मानक और निर्यात के लिए कोडेक्स मानक का निर्धारण ग्रेडिंग (श्रेणीकरण), तुड़ाई और उपरांत पूर्व उपचार के तरीके, पैकिंग, पौष्टिकता का विवरण और पोषक तत्वों का रासायनिक विश्लेषण भी किया जा रहा है। इसके अलावा बायोटैक्नोलोजी से उत्पादन क्षमता बढ़ाना इसके द्वारा रंग, सुगन्ध और गुणवत्ता में सुधार, आनुवंशिक रूपांतरण, सूक्ष्म-वंशवृद्धि, जनन द्रव्यों का संरक्षण, बायोफर्टिलाइजर, बायोपेस्टीसाइड और पोस्टहारवेस्ट (तुड़ाई उपरांत) बायौटेक्नोलॉजी का लीची की बागवानी में योगदान के लिए संसाधन और सुविधायें जुटाने का प्रयास जारी है।

संस्थागत उपलब्धियाँ

विकसित सुविधाएँ: इस केन्द्र द्वारा खेती/ बागवानी के लिए आवश्यक उपकरण और प्रायोगिक परीक्षण सह अनुसंधान के लिए प्रयोगशाला भवन का निर्माण और उपकरणों से लैस किया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से फसल उत्पादन संरक्षण, सुरक्षा और तुड़ाई उपरांत प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है।
पुस्तकालय को लीची और लीची से संबंधित बागवानी के साथ-साथ साहित्य प्रायोगिक पुस्तिकाओं, पत्रिकाओं आदि से दिनों दिन समृद्ध किया जा रहा है। वर्तमान में 1205 संदर्भ पुस्तकें, अलग-अलग विषयों के 14 इनसाइक्लोपिडीया, 29 ब्रिटेनिका मौजूद हैं। इसके अलावा पुस्तकालय में 10 भारतीय और 12 विदेशी जरनल उपलब्ध हैं। हिन्दी भाषा में भी कई साहित्य और विज्ञान की पत्रिकाएँ उपलब्ध हैं।
कृषि अनुसंधान सूचना प्रणाली प्रकोष्ठ को निर्मित कर कप्यूटर (संगणक) के विभिन्न पद्धतियों और कार्यक्रमों से समृद्ध किया गया है ताकि विश्वस्तरीय अनुसंधान और विकास कार्य हो सके और सूचना संपर्क बना रहे। संस्थान के सारे कम्पूयटर इन्ट्रानेट से जुड़े हैं जिनमें इंटरनेट की भी सुविधा है। हाल ही में संस्थान की वेबसाइट भी तैयार की गई है जो सूचनाओं के आदान प्रदान में सहायक साबित होगी।
प्रक्षेत्रः बिहार सरकार के द्वारा हस्तांतरित प्रक्षेत्र को इस केन्द्र द्वारा कड़ी मेहनत के साथ अपने मौलिक संसाधन और सुविधाएं विकसित की जा रही है। संरचना निर्माण में पूरे की पक्की चारदीवारी, भवन, मिस्टचैम्बर (कुहासा गृह), नेट हाऊस, पॉलीथीन घर आदि तैयार कर लिए गये हैं और मुख्य प्रशासनिक सह प्रयोगशाला भवन का निर्माण भी लगभग पूरा हो गया है। पौध रोपण कार्य भी लगभग पूरा हो चुका है। ज्यादातर लीची के पेड़ वयस्क अवस्था में है जिसमें नियमित फलन हो रहे हैं।

अनुसंधान कार्य

जनन द्रव्य एवं फसल सुधार
जनन द्रव्यों का संग्रह, प्रबंधन, मूल्यांकन, चरित्र वर्णन, और विकास के क्रम में केन्द्र द्वारा लीची के 52 जनन द्रव्यों का देश के विभिन्न भागों से जैसे बिहार, झारखण्ड,प. बंगाल और उत्तराखंड से संग्रह कर अनुसंधान का कार्य प्रगति पर है। विभिन्न व्यावसायिक किस्मों का मूल्यांकन और चरित्र वर्णन का कार्य चल रहा है।

फसल उत्पादन

गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन हेतु विशेष उत्पादन प्रणाली विकसित कर ली गयी है। पोषक तत्व और वृद्धि नियामकों के प्रयोग का मानकीकरण कर लिया गया है। छत्रक प्रबंधन और पुराने बागों के जीर्णोद्धार की तकनीक विकसित की गयी है।
पौध प्रवर्धन और प्रसारण
पौध प्रसारण और पौध प्रवर्धन की विभिन्न विधियों का मानकीकरण हो रहा है।

फसल सुरक्षा

लीची में लगने वाले प्रमुख कीटों और रोगों की पहचान एवं प्रबंधन पर केन्द्र ने काफी कार्य किया है। समेकित कीट प्रबंधन तकनीक पर कार्य प्रगति पर है। बायो पेस्टीसाईट (जैव नाशक जीव) पर कुछ प्रयोग चल रहे हैं।

तुड़ाई-उपरांत तकनीक

लीची के फलों की अल्प भंडारण क्षमता और तुड़ाई का अंतराल कम होने के साथ-साथ मौसमी बहुलता के कारण फलों की बर्बादी 30 प्रतिशत तक हो सकती है। इसके लिए विभिन्न प्रायोगिक परीक्षण, रासायनिक उपचार, प्रसंस्करण और मूल्यवर्द्धन का कार्य प्रगति पर है। लीची शराब और लीची नट बनाने की तकनीक विकसित कर ली गयी है।
जारी है
लीची के विविध जनन द्रव्यों का संग्रह और किस्मों का विकास, लीची की किस्मों का मूल्यांकन, लीची के प्राकृतिक पौध (सीडलिंग) का चयन, लीची का सघन रोपण और अंतर्वर्ती फसल पर परीक्षण, खेती, लीची में समेकित पोषण और सिंचाई जल प्रबंधन, कार्बनिक लीची उत्पादन, लीची आधारित कृषि प्रणाली पद्धति, फूलन एवं स्फुटन को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों और वृद्धि नियामकों का प्रयोग, लीची को प्रभावित करने वाले मुख्य कीट और रोग से नियंत्रण के साथ साथ लीची के फलों की प्रसंस्करण और मूल्य-वर्द्धन कर लीची फलों के भंडारण क्षमता के लिए समेकित तुड़ाई-पूर्व और उपरांत प्रबंधन।
इन सब के अलावा कुछ अन्य परियोजनायें जैसे कृषि और मात्स्यिकी की वृहत बीज परियोजना (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संपोषित) और (2) “सूक्ष्म जीव की कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में प्रयोग प्रोजेक्ट के अन्तर्गत बागवानी फसलों में बायोफर्टिलाइजेसन के लिए अर्वस्कुलर माइकोराइजा का उपयोग” (3) सूक्ष्म तकनीक प्रबंधन परियोजना (राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा संपोषित) भी चल रही है।

केन्द्र द्वारा प्रदत्त सेवायेँ
1. प्रशिक्षण, तकनीकी प्रचार प्रसार 2. पौधशाला प्रबंधन और पौध प्रवर्धन 3. लीची से जुड़े उद्यम और उद्यमिता विकास 4. आवश्यकता आधारित तकनीकी सलाह और परामर्श 5. विभिन्न विकसित तकनीकों की प्रदर्शनी राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, लीची पर अनुसंधान और इसके विकास कार्य के लिए उनसे समर्पित वैज्ञानिकों और संबद्ध कर्मचारियों के दल के साथ अपने स्थापना के दौर से गुजरते हुए इस विशिष्ट जलवायु पसंद फसल लीची की सफल खेती और प्रौद्योगिकी विकास कर लीची उत्पादकों और उद्यमियों की बेहतर सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति बदलाव के लिए कटिबद्ध है।