NRCL - Frequently Asked Questions

फसल-पोषण एवं उत्पादन प्रबन्धन


उत्तर: लीची में 12 वर्ष के आयु के ऊपर के वृक्षों के लिए 750 ग्राम नेत्रजन, 500 ग्राम फॉस्फोरस एवं 750 ग्राम पोटाश का प्रयोग करना शोध परिणामों में अच्छा पाया गया है। फल तुड़ाई एवं कटाई-छंटाई के बाद जून महीने में 500 ग्राम नेत्रजन (1 किलोग्राम यूरिया), 500 ग्राम फॉस्फोरस (1 किलोग्राम डीएपी) एवं 500 ग्राम पोटाश डालना चाहिए एवं बाकी बची 250 ग्राम नेत्रजन की मात्रा (500 ग्राम यूरिया) एवं 250 ग्राम पोटाश (400 ग्राम) लीची फलों के लौंग के आकार के दना बन जाने के बाद (अप्रैल प्रथम सप्ताह) में डालें। पर्याप्त नमी की अवस्था में ही उर्वरकों का व्यवहार करें।

उत्तर: प्लानोफिक्स का छिड़काव 4 मिलीलीटर दवा 10 लीटर पानी में फलों के लौंग के आकार का हो जाने के बाद करें। इससे फलों का झड़ना कम हो जाता है। लीची के बाग में फल लगने के बाद से तुड़ाई के 8-10 दिन पहले तक खेत में नमी अवश्य बनाये रखें।

उत्तर: फलों के लौंग के आकार का बन जाने पर बोरॉन का पहला छिड़काव (अप्रैल प्रथम सप्ताह में) 4 ग्राम प्रति लीटर पानी एवं दूसरा छिड़काव फलों के रंग के शुरूआत (लाली) होने के समय (मई प्रथम सप्ताह) में करें। इससे फलों के फटने की समस्या कम हो जाती है।

उत्तर: थैलिकरण (बैगिंग) कम लागत वाली तकनीक है जिसके द्वारा बेहतर गुणवत्ता वाले लीची फल प्राप्त किये जा सकते हैं। इसे करने का सबसे अच्छा समय लीची की तुड़ाई के 30 दिन पहले (लगभग 20 अप्रैल के आस पास) होता है। इससे निम्नलिखित लाभ हैं :

  • फल बेधक कीट से नुकसान मे कमी होता है
  • सूर्य-प्रकाश से फल जलन (सन बर्न), धब्बा एवं फल फटाव की समस्या में कमी आती है
  • फल वजन में वृद्धि होता है
  • फलों में एक समान रंग का विकास होता है
  • कीटनाशक के उपयोग और अवषेशों में कमी लायी जा सकती है

उत्तर: प्रबंधन रहित बागों में, जहाँ पेड़ निर्बाध रूप से बढ़ते हैं, छिड़काव और कटाई-छँटाई जैसी शस्य क्रियाओं का कार्यान्वयन आम तौर पर एक प्रमुख बाधा रही है। ऐसे बागों में शीर्ष पर बैगिंग संभव नहीं है। हाल के वर्षों में पेड़ों के क्षत्रक प्रबंधन ऐसे करने की अनुसंशा की गयी है कि पेड़ के मध्य क्षत्रक खुली रहे और ऊंचाई भी नियंत्रित रहे। यदि इस मानक प्रबंधन प्रथा का पालन किया जाए, तो लीची में शीर्ष पर भी बैगिंग को सफलतापूर्वक निष्पादित किया जा सकता हैं।

उत्तर: परंपरागत रूप से, लीची के जीर्णोद्धार (कायाकल्प) में वृक्षों को जमीन की सतह से 1.5 मीटर ऊपर से काट (हेडबैक कर) दिया जाता है। पर, हाल ही में आईसीएआर-एनआरसीएल में, अनुत्पादक 10-12 साल पुराने सीडलिंग पौधों को जमीन से 25-30 सेंटीमीटर ऊपर से काट दिया गया जिसमें से विपुल, नये अंकुर निकले। उनमें से केवल वांछित कल्लों को ही रखा गया जो अभी उचित खटरक कि ओर अग्रसर हैं। इसलिये, लीची को 50 सेंटीमीटर ऊंचाई पर भी जीर्णोद्धार द्वारा कायाकल्प किया जा सकता है अगर पौधों कि उचित देखभाल और रखरखाव कि जाये।

कीट एवं रोग प्रबन्धन


उत्तर: लीची फल बेधक कीट का प्रबंधन इस प्रकार हैं :

फल लगने से पहले

पुष्पन के समय (मंजर निकलने, पर फूल खिलने से पहले) नीम बीज अर्क या नीम तेल (4 मिली/लीटर) या निम्बीसीडीन 0.5 % या निम्बिन 4 मिली./ली. पानी के घोल या वर्मीवाश 5% के छिड़काव करने से मादा कीट अण्डे नहीं दे पाती है।

फल लगने के बाद

प्रथम कीटनाशी छिड़काव - फल लगने के 10 दिन बाद अर्थात फल के लौंग आकार की अवस्था होने पर अंतरग्राही (सिस्टेमिक) कीटनाशी थियाक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (0.5-0.7 मिली./लीटर) या नोवाल्यूरान 10 ई.सी. (1.5 मिली/लीटर) या लुफेन्यूरान 5.4 ई.सी. (0.6 मिली/लीटर) पानी के घोल का छिड़काव करें ।

दूसरा छिड़काव (सामान्य मौसम की दशा में) - संभावित फल तुड़ाई के लगभग 12-15 दिन पूर्व नोवाल्यूरान 10 ई.सी. (1.5 मिली/लीटर) या इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 प्रतिशत एस.जी. (0.5 ग्राम/लीटर पानी) या लेम्डा-साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. (0.5 मिली./लीटर पानी) का छिड़काव करें।

एहतियात / सजगता

बदलते मौसम की दशा में (असमय वर्षा, फल तैयार होने के समय पूर्वा हवा का बहना या वातावरण में आर्द्रता की अधिकता होने पर) फलों को फल बेधक कीट से बचाव हेतु एक अतिरिक्त छिड़काव ऊपर्लिखित पहले और दूसरे छिड्काव के बीच करने की आवश्यकता होगी। ऐसी अवस्था में दूसरा छिड़काव फलों की संभावित फल तुड़ाई के 18-20 दिन पहले अंतरग्राही (सिस्टेमिक) कीटनाशी रसायन थियाक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (0.5-0.7 मिली./लीटर) और तीसर छिड़काव फल तुड़ाई के 10 दिन पहले नोवाल्यूरान 10 ई.सी. (1.5 मिली/लीटर) या इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 प्रतिशत एस.जी. (0.7 ग्राम/लीटर पानी) या लेम्डा-साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. (0.7 मिली./लीटर पानी) करनी होगी।

ध्यान रखें

कीटनाशी के घोल में पत्तियों पर रसायन को चिपकने वाले द्रव्य स्टीकर का इस्तेमाल 0.4 मिली/लीटर की दर से करें । इससे कीटनाशी रसायन का असर ज्यादा होता है एवं वर्षा के दिनों में अगर 4 घंटे तक भी वातावरण खुला रहा तो छिड़काव असरदार साबित होता है। इसकी अनुपलब्धता हो तो बदले में कोई भी डिटर्जेंट पाउडर एक चम्मच प्रति 15 लीटर घोल में अवश्य डालें।

उत्तर: लीची फल बेधक कीट का प्रबंधन इस प्रकार हैं :

लीची मकड़ी का अधिकतम प्रकोप जुलाई-अक्टूबर और फरवरी-मार्च के दौरान देखी जाती है, विशेषकर जिस बाग में हर वर्ष नियमित कटाई-छंटाई की क्रिया न की जाती हो या खराब प्रबंधित बाग में। इसके प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिये:

  • फल की तुड़ाई के बाद, नये फ्लश के उद्भव से पहले संक्रमित टहनियाँ/ अंकुरों को काटकर निकाल दें और नष्ट कर दें।
  • इसके बाद जुलाई माह के दौरान क्लोरफेनेपायर 10 ईसी (3.0 मिली/ली. पानी) या प्रोपरगाइट 57 ईसी (3.0 मि.ली./ ली. पानी) का एक छिड़काव करें।
  • फिर अक्टूबर माह के दौरान नव संक्रमित टहनियों की छंटाई करें और क्लो क्लोरफेनेपायर 10 ईसी (3.0 मिली/ली. पानी) या प्रोपरगाइट 57 ईसी (3.0 मि.ली./ ली. पानी) का छिड़काव करें।

उत्तर: फलों की परिपक्वता के चरम चरण में वर्षा की घटना लीची में फल बोरर के संक्रमण के अनुकूल ट्रिगर कारकों में से एक है। इसे दूर करने के लिए, लीची को फलों के सेट होने के 25-30 दिन पश्चात बगगिंग कि जा सकती है। पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ, यह न केवल फलों को बोरर संक्रमण से यह बचाता है बल्कि फलों को सूर्यप्रकाश से झुलसने और फल फटने से भी बचाता है और फलों के रंग में भी सुधार लाता है।

उत्तर: पत्ती झुलसा नर्सरी में लीची के पौधों का एक प्रमुख रोग है, जो बागों के वृक्ष में मंजर (पैनिकल) एवं विकासशील फलों को भी झुलसा देते हैं। इस रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों के अंतिम सिरे पर उत्तकों के सूखने (उत्तकक्षय या नेक्रोसिस) के रूप में होती है। आमतौर पर ऐसे लक्षण को देखकर पोटैशियम की कमी का भ्रम होता है। बाद में पत्तियाँ सिरे से दोनों हाशिये की ओर सूखने लगती है। धीरे-धीरे संक्रमित पत्तियाँ चॉकलेटी गहरे-भूरे रंग की झुलसी हुई प्रतित होती है। बागों के फलन योग्य वृक्षों में रोग के लक्षण पुष्पण एवं फलन की अवस्था में दिखाई देते हैं। इसके रोगकारक मंजरों को झुलसा देते हैं (सुरका रोग) जिससे प्रभावित मंजरों में कोई फल नहीं लग पाते। ऐसे मंजर देखने में सूर्य-किरणों से जली हुई प्रतीत होती है। अगर मौसम अनुकूल नहीं रहा और मंजर की अवस्था रोग से बच गई तो बाद में अनुकूल मौसम होने पर फल भी झुलस जाते है। तुड़ाई उपरांत भी इसके रोगजनक फल सड़न पैदा करने में प्रमुख कारक होते हैं।

उत्तर: यह रोग अल्टरनेरिया अल्टरनाटा नामक फफूँद द्वारा जनित होता है। वृक्ष के क्षत्रक की निचली पत्तियों पर इसके रोगजनक सालों भर पलते है। रोग का फैलाव पूरी तरह मौसम, तापक्रम 30-34 डिग्री सेल्सियस एवं 60-70 प्रतिशत आर्द्रता, पर निर्भर करता है।

उत्तर: प्रभावित पत्तियों को समय-समय पर इकट्ठा कर जला दें। बचाव के लिए नर्सरी पौधों पर ताम्रयुक्त फफूंदनाशी, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

उत्तर: मंजर एवं फलों को झुलसा रोग से बचाने के लिए थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लीटर या डाईफेनोकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 1 मिली/लीटर या ऐजोक्सीस्ट्रोबिन 23 प्रतिशत एस.सी. 1 मिली/लीटर या कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लीटर का पहला छिड़काव मंजर निकलने के बाद परन्तु फूल खिलने से पहले, दूसरा छिड़काव फल लगने के बाद और तीसरा छिड़काव फल तुड़ाई से लगभग 20 दिन पहले करें।

उत्तर: यह मुख्यतः फलों में होने वाला रोग है पर साथ ही यह पत्तियों और टहनियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। पत्तियों पर धब्बे गोलाकार या अनियमित भूरे रंग के क्षेत्र के रूप में दिखाई दे सकते हैं। फलों पर रोग के संक्रमण की शुरूआत फल पकने के लगभग 15-20 दिन पहले होती हैं पर कभी-कभी लक्षण फल तुड़ाई-उपरांत तक दृष्टिगोचर हो सकते हैं। फलों के छिलकों पर छोटे-छोटे (0.2-0.4 से.मी.) गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है जो आगे चलकर एक दूसरे से मिलकर काले और बड़े आकर के (0.5-1.5 से.मी.) धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। रोग की अधिक तीव्रता की स्थिति में काले घब्बों का फैलाव फल के छिलकों पर आधे हिस्से तक हो सकता है। रोग के कारण मूलतः फलों के छिलके ही प्रभावित होते हैं परन्तु इस वजह से ऐसे फलों का बाजार मूल्य गिर जाता है। उच्च तापक्रम एवं आर्द्रता रहने पर रोग का संक्रमण और फैलाव बड़ी तेजी से होता है।

उत्तर: जहाँ तक संभव हो, प्रभावित पत्तियाँ एवं टहनियों को वृक्षों से तोड़कर नष्ट कर दें । बचाव के लिए थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लीटर या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लीटर या डाईफेनोकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 1 मिली/लीटर या ऐजोक्सीस्ट्रोबिन 23 प्रतिशत एस.सी. 1 मिली/लीटर का छिड़काव फल तुड़ाई से लगभग 20 दिन पहले करें। तुड़ाई के पहले फफूँदनाशी का छिड़काव तुड़ाई के बाद फलों की जीवनावधि को बढा़ता है, लेकिन फफूँदनाशी रसायानों के फलों में अवशिष्ट का भी ध्यान रखना जरूरी है।

उत्तर: नीम या अंडी की खल्ली 5-8 किलोग्राम/वृक्ष खाद के रूप में प्रयोग करें। ट्राइकोडर्मा हरजियानम, ट्राइकोडर्मा विरिडी या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस इत्यादि जैव-नियंत्रक का प्रयोग करें, जो वृक्ष की वृद्धि में भी सहायक होता है। ट्राइकोडर्मा का प्रयोग इस प्रकार करें: - वृक्ष के क्षत्रक की बाहरी सीमा से लगभग दो फीट अंदर की तरफ मिट्टी में 100-200 ग्राम/वृक्ष (उम्र के हिसाब से) ट्राईकोडर्मा उत्पाद को 2-4 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर वृक्ष के चारो तरफ 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी में छिड़क दें और उसे कुदाल से अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। मिट्टी में नमी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए। अगर नहीं हो, तो ट्राईकोडर्मा डालने के बाद हल्की सिंचाई कर दें। यदि जैव-नियंत्रक न हो तो हैक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत एस.सी. 1 मिली/लीटर या कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम / लीटर के घोल से वृक्ष के सक्रिय जड़ क्षेत्र को भिगोएँ।

तुड़ाई उपरांत प्रबन्धन एवं मूल्य संवर्धन


उत्तर: समय से पहले तोड़ ली गई फल में न केवल खाने योग्य गूदा कम होता है बल्कि ऐसे फल खट्टी और कम गुणवत्ता की भी होती हैं। इसी प्रकार, देर से तोड़ी गई फल गुदगुदा एवं स्वाद में खराब होते हैं । इसलिए, जरूरी है कि फल को सही परिपक्वता अवस्था और समय पर तुड़ाई की जाये। लीची फल की सही परिपक्वता अवस्था के कुछ विश्वसनीय संकेतक हैं:

  1. फलों की त्वचा का चमकीला लाल रंग
  2. पके फल का रसीला स्वाद (Rosy flavour)
  3. कुल घुलनशील ठोस पदार्थ (TSS) 18-20 डिग्री ब्रिक्स
  4. अनुमेय अम्लता 0.5% से कम होना
  5. कुल घुलनशील ठोस पदार्थ: एसिड अनुपात 40 से अधिक
  6. छिलकों की मांसल प्रवर्ध (tubercles) का चपटा होना
  7. फल सेटिंग के लगभग 60-65 दिन बीतना

उत्तर: लीची को सही परिपक्वता अवस्था में तोड़ें और अधिमानतः सुबह के समय में तुड़ाई करें। फलों को छांटना और वर्गीकृत किया जाना चाहिए, इसके बाद खेत की गर्मी (फील्ड हीट) को दूर करने के लिए पूर्व-शीतलन उपचार करना चाहिए। उसके बाद, फल को उपयुक्त आकार के मजबूत सीएफ़बी बक्से में पैक किया जाना चाहिए, और ठंडे कमरे/ शीतगृह (कोल्ड स्टोरेज) में 3-5 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80-90% आर्द्रता वाले स्थान पर संग्रहीत किया जाना चाहिए या सीधे गंतव्य बाजार में पहुंचाया जाना चाहिए। फलों की गुणवत्ता में गिरावट एवं छिलके का भूरापन (पेरिकार्प ब्राउनिंग) कम करने के लिए फसल तुड़ाई से उपभोक्ता की पहुँच तक ठंडी श्रृंखला बनाये रखना आवश्यक है।

उत्तर: लीची को विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पादों में संसाधित किया जा सकता है, जैसे- लीची पल्प, लीची स्क्वैश, लीची आरटीएस, लीची वाइन, डिहाइड्रेटेड लीची पल्प, लीची नट (किशमिश), कैन्ड लीची (डिब्बाबंद लीचीगुल्ला) और कई अन्य उत्पाद।

लीची की किस्में एवं आनुवांशिक संसाधन


उत्तर: अगेती फसल एवं नियमित उत्पादन के लिए ‘शाही’ किस्म सबसे अच्छी होती है अधिक उत्पादन एवं फल फटने की कम समस्या वाली ‘चाईना’ किस्म भी बेहतर है अतः मिश्रित बाग लगाने की सलाह दी जाती है जिसमें 60 प्रतिशत ‘शाही’, 30 प्रतिशत ‘चाईना’ और 10 प्रतिशत अन्य क़िस्मों को लगाने से संतुलन बनाये रखा जा सकता है।

उत्तर: लीची में हाइब्रिड किस्मों का प्रदर्शन अभी प्रयोगशाला के स्तर पर है। किसानों को सलाह दी जाती है कि चयनित किस्में जैसे ‘गण्डकी सम्पदा’, ‘गण्डकी लालिमा’, ‘गण्डकी योगिता’, ‘सबौर बेदाना’ आदि लगायें। ‘गण्डकी सम्पदा’ के फल बड़े होते हैं जो निर्यात के दृष्टिकोण से बेहतर पाये गये हैं।

उत्तर: लीची के उच्च गुणवत्ता वाले पौधे राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर की पौधशाला से रू. 100/पौधा (स्थापित किस्मों) तथा रू. 125/पौधा (नवीन किस्मों) के दर से प्राप्त किये जा सकते है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा सत्यापित अन्य पौधशालाओं तथा राज्य सरकार की पौधशालाओं या कृषि विश्वविद्यालयों से भी लीची के पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं।

उत्तर: लीची का पौधा जुलाई-अगस्त में लगाना चाहिए। अतः, पौधों को जून-जुलाई में खरीद सकते हैं अथवा अग्रिम बुकिंग कराकर आरक्षित कर सकते हैं।

उत्तर: जी हाँ । पौधा लगाने के पहले मई-जून में रेखांकन के अनुसार 1×1×1 मीटर आकार के गड्ढे बनायें जिन्हें 15 दिन खुला रखने के बाद खल्ली, गोबर की खाद तथा दीमकनाशी दवाइयों के मिश्रण से भर दें। एक दो वर्षा के बाद जुलाई अगस्त में गड्ढे के बीचोबीच पौध रोपण करें। ध्यान रहे कि पौधा लगाते समय थैली या जड़ पिण्डी की मिट्टी टूटे न अन्यथा पौध स्थापना नहीं होगा।

उत्तर: पारंपरिक किस्मों में निहित आनुवंशिक सामग्री की विविधता और आधुनिक फसल के साथ साथ, फसल के जंगली रिश्तेदारों और अन्य जंगली पौधों की प्रजातियाँ को भी जिसका उपयोग, अभी या भविष्य में भोजन और कृषि के लिए किया जा सकता है उसे पौधे के आनुवंशिक संसाधन के रूप में जाना जाता है।

उत्तर: लुप्तप्राय और व्यावसायिक रूप से मूल्यवान प्रजातियों के आनुवंशिक लक्षणों को संरक्षित करने के लिए जर्मप्लाज्म संरक्षण सबसे सफल तरीका है। जर्मप्लाज्म संबंधित पौधे में मौजूद सभी जीनों के लिए एक जीवित सूचना स्रोत है, जिसे लंबी अवधि के लिए संरक्षित किया जा सकता है और मौजूदा किस्मों में और सुधार लाने के लिए भविष्य में जब भी आवश्यक हो, इसे पुनर्जीवित किया जा सकता है।

उत्तर: अपने प्राकृतिक आवास के बाहर एक प्रजाति का संरक्षण ‘एक्स-सीटू’ संरक्षण के रूप में जाना जाता है। इस विधि में, प्रचलित किस्मों और जंगली पौधों की प्रजातियों की आनुवंशिक जानकारी को कृत्रिम परिवेशीय तकनीक और बीजों के रूप में संरक्षित किया जाता है, जिन्हें दीर्घकालिक उपयोग के लिए जीन बैंकों के रूप में संग्रहीत किया जाता है। क्रायोप्रीज़र्वेशन भी इसी पद्धति के अंतर्गत आता है।

उत्तर: यह प्राकृतिक आवासों में आबादी को स्थापित करने और बनाये रखने के द्वारा प्राकृतिक आबादी के रूप में आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण करने का तरीका है। बागवानी और फूलों की खेती जैसी कृषि गतिविधियाँ भी प्राकृतिक आवास में पौधों का संरक्षण करती हैं। राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य जैसे जीवमंडल भंडार भी इनसीटू संरक्षण तरीके हैं।

उत्तर: संरक्षण की इस पद्धति में, जंगली प्रजातियों और पूर्ण प्राकृतिक या अर्ध-प्राकृतिक परिस्थितिकी प्रणलियों को एक साथ संरक्षित किया जाता है। यह नयी क़िस्मों के विकास के लिये उपयोगी लक्षणों के आसान विकास और दोहन की अनुमति देता है।

उत्तर: ऑन-फार्म संरक्षण पारंपरिक कृषि, बागवानी या सिलविककल्चर (वन-वृक्ष विज्ञान) प्रणाली को अपनाते हुये किसानों द्वारा स्थानीय और जंगली प्रजातियों के साथ विकसित होने वाले पारंपरिक क़िस्म (लैंड रेस) की आनुवंशिक विविधता का स्थायी प्रबंधन है।

उत्तर: बीज, वनस्पति भागों /उत्तक और बेशक जीवित पौधों के रूप में जर्मप्लाज्म को प्रकृति में बनाये रखा जा सकता है।

उत्तर: एक विशिष्ट ऐतिहासिक उत्पत्ति के साथ पहचान वाली फसल की किस्में, जो काफी विविध हो और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हो, और इसकी खेती और प्रबंधन किसानों के ज्ञान के आधार के साथ सहसंबद्ध है, जो बीज चयन और क्षेत्र प्रबंधन की प्रथाओं के साथ-साथ किसानों के ज्ञान के आधार के रूप में संदर्भित है, उसे पारम्परिक किस्म (लैन्ड रेस) कहते हैं।

उत्तर: जीन बैंक नियंत्रित स्थितियों के तहत आनुवंशिक सामग्री के संरक्षण के लिए एक प्रकार का भंडार हैं। पौधों के लिए, यह कृत्रिम परिवेशीय स्टोरेज द्वारा किया जाता है, पौधे से कटिंग को कम तापमान में भण्डारण किया जाता है, या बीजों को स्टॉक किया जाता है (उदाहरण के लिए सीडबैंक में) या कोल्ड चैम्बर (बीजों के लिए) में स्टोर किया जाता है।

उत्तर: पासपोर्ट डेटा में एक परिग्रहण की उत्पत्ति के बारे में जानकारी होती है जैसे कि संग्रह स्थल पर दर्ज विवरण) और वर्णनकर्ता सहित कोई भी अन्य प्रासंगिक जानकारी जो परिग्रहण कि पहचान में सहायता करती है। इनमें मिट्टी कि विशेषताएँ, पारिस्थितिक क्षेत्र, समुद्र तल से ऊंचाई, अक्षांश और देशांतर, संग्रहकर्ता का नाम, आदि शामिल है।

उत्तर: वे लक्षण/ पात्र जो पैतृक हैं, और आसानी से पहचाना और सामान्य अवलोकन प्रतीत होता है, और पौधों की किस्मों की आसान और त्वरित पहचान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है उन्हें हम DUS वर्णनकर्ता के रूप में मानते हैं। समान्य विवरणकों में वृद्धि प्रकार, पत्ती के आकार/ आकार, फूलों की विशेषताएँ और बीज प्रकार शामिल हैं।

उत्तर: हां, पौधे की किस्मों की पहचान के लिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एक बहुत ही सटीक और उत्तम तकनीक है।

उत्तर: हां, इसका उपयोग आणविक परिशुद्धता प्रजनन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में किया जा सकता है।

उत्तर: हाँ। यह सभी किस्मों के लिए किया जा सकता है।

उत्तर: डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कार्य करने के लिए 0.0 से 0.5 ग्राम पत्ती पर्याप्त है।